“नारी की महत्ता “(कुण्डलियाँ छंद)
“नारी की महत्ता ”
(कुण्डलियाँ छंद ”
1.नारी तुम ये न समझो, तुम हो अब कमजोर।
बन गयी हो अब तुम तो, भारत का सिरमौर।
भारत का सिरमौर, होत सब तेरे बूते।
हेय दृष्टि जो डालें, उन्हें पड़ेंगें जूते।
अबला हो तुम नारी, सभी तुझसे हैं भारी।
कहे रामप्रसाद, ये न तुम समझो नारी।।
2.नारी तु कमजोर नहीं, हैं तु देश की ढाल।
है कभी तु शांतचित तो, कभी तु हैं विकराल।
कभी तु हैं विकराल, तु मन को सबके भाये।
करे जो तुझे प्यार, बदले प्यार ही पाये।
जो करे गलत काम, तु पड़ती उन पर भारी।
कहे रामप्रसाद, कमजोर नहीं तु नारी।।
3.
माँ बनकर दुलार करै, बेटी मान बड़ाय।
पत्नी बन सेवा करै, बहनें बन हरसाय।
बहनें बन हरसाय,सभी को सुख पहुचावै।
नित प्रति प्रेम लुटाय, सभी के मन को भावै।
दुख सहन कर सारे, कभी ना करती आहा।
कहे रामप्रसाद, दुलार करे मेरी माँ।।
रामप्रसाद लिल्हारे
“मीना “