नारी की पीड़ा -आर के रस्तोगी
नारी तुझको कोई अबला कहता,कोई सबला भी कहता है
पुरुष तुझको सबला कहकर,फिर भी वह प्रताड़ित करता है
तूही द्वापर में,तूही त्रेता में,तूही कलयुग में आई है
कही तुझे जुए में हारा,कही तूने अग्नि परीक्षा पाई है
जो नारी का करे अपमान,वह मर्द कभी नहीं हो सकता है
जो बहन का करे न सुरक्षा,वह भाई कभी नहीं हो सकता है
तुझ को मारा पीटा जाता,तुझको ही गलियों में घसीटा जाता है
मांग रही हो दया की भीख,फिर भी तेरा विडिओ बनाया जाता है
सडक पर तुझ पर फब्ती कसते,तेरा ही बुलाकर रेप किया जाता है
रेप करके भी मिलती नहीं तसल्ली,फिर तुझको मार दिया जाता है
तुझ पर ही सब दोष लगाते है,तुझ पर ही पहरे लगाये जाते है
लडके फिरते है खुले सांड से,उन पर पहरे नहीं लगाये जाते है
नारी तू कितनी महान है,तू ही प्रसव पीड़ा सहती है
दुःख उठा कर भी,कभी किसी से कुछ न कहती है
कोर्ट में भी उल्टे सीधे प्रश्न पूछे जाते तेरा अपमान वहां होता है
हमारा कानून भी अँधा,वह भी आँखों पर पट्टी बांधे ही रहता है
नारी ने नर को जन्म दिया,फिर भी नर उसको कोठे पर बैठाता है
कब तक सहेगी ये नारी पीड़ा,रस्तोगी की समझ में ये नहीं आता है
आर के रस्तोगी