नारी की पीड़ा।
कौन समझ सकता है पीड़ा नारी की ।नर अपनी खुशी के लिए कहता रहा बिचारी की।।नारी नारी सब कोई कहै.नारी रतन खदान।नारी से नर उपजै धुव्र प्हलाद समान।।आज कितने हो रहे नारी पर अतयाचार।पर तमशा बीन बना देख रहा सनसार।।कया कोई आगे आयेगा जो है वीर महान ।रक्षा करें नारी की बन करकै बलवान।।आज नहीं वह खोल रही है अपनी जुवान।देख रही है हमें और परख रही इनसान।।