नारी का सम्मान
चुप है क्योंकि वो अपने सम्मान पे मरती है
सपने है उसके लेकिन समाज से डरती है
सब कुछ करना चाहती है सोच से डरती है
कुछ भी करके अपने अधिकार से लड़ती है
नारी है वो किसी भी इंतहान से न डरती है
हर जुल्म – सितम को हसकर सह लेती है
लाखो तोड़ा तुमने फिर भी जुड़ लेती है
अपने हौसले से तकदीर बदल देती है
टूटी हुई उम्मीद में आस भर देती है
नारी है वो किसी भी इंतहान से न डरती है