नारी का मत कर अपमान
(गीतिका)
छंद- आल्ह
[विधान – चौपाई अर्धाली (16) + चौपई (15) मात्रा संयोजन- 16 // 15]
नारी
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घर की यह आधारशिला है, नारी का मत कर अपमान.
इससे घर संसार मिला है, इसका हर-दम कर सम्मान.
ममता, धीरज, सेवा की है, यह मिसाल दुनिया में एक ,
नारी में माँ सर्वोपरि है, जो होती घर पर बलिदान.
जननी जन्मभूमि है अपनी, धरती नारी का प्रतिरूप,
लिए सृष्टि की भेंट अनूठी, सहती है वह हर तूफान.
दुराचार, हिंसा उत्पीड़न, क्यों समाज है नहीं सचेत,
क्यों नर ने नारी के तन पर, दिये व्यथा के अमिट निशान.
‘आकुल’ नारी ने न कभी भी, ललकारा नर का वर्चस्व,
जिस दिन अबला बला बनेगी, होगा नर भी लहूलुहान.