नारी का परिधान
पुरानी बूढ़ी जिनकी सोच,
स्वयं को कहते वे विद्वान।
ज़रा भी उन्हें न आता रास,
आज की नारी का परिधान।।
कहीं तन अंबर हैं अति न्यून,
करें कामुकता का संचार।
कहीं पट झीने दिखते अंग,
निमंत्रित करते हैं व्यभिचार।
बढ़ेगी कैसे नारी शक्ति,
सोच ये डाल रही व्यवधान।
नारी का परिधान।।
सत्य से आँखें मूँदे मूढ़,
बिछाते रहते पथ में शूल।
कूल पर लेकर जाती नाव,
भले ही धारा हो प्रतिकूल।
कहीं पर थामे कर में अस्त्र,
कहीं वह नभ में भरे उड़ान।
नारी का परिधान।।
परिस्थिति देश काल अनुसार,
किया है धारण उसने रूप।
प्रकृति का जो भी हो सिंगार,
सदा ही होता दिव्य अनूप।।
बनाएँ व्यापक अपनी दृष्टि,
विवादों का होगा अवसान।
नारी का परिधान।।
डाॅ बिपिन पाण्डेय