नारी का क्रोध
तनी भृकुटि है क्रोध से,नेत्र धधकते ज्वाल ।
बेलन लेकर हाथ में , देखो आई काल।।
फूट पड़े ज्वाला सभी, रूद्र रूप विकराल।
गर्म कोयले की तरह, उबल रही तत्काल।।
माथे पर कुमकुम सजी, मुख गुस्से से लाल।
आज चंडिका रूप में,उग्र सुनामी हाल।।
तीव्र लपट से जल उठी, विह्वल हृदय अधीर।
ओठों पे अपशब्द हैं, वाणी विषधर तीर।।
बहुत सह लिए जुल्म सब, प्रखर दर्द आघात।
कब तक सकुचाई रहूँ,,बदलूँगी हालात।।
खड्ग-खपर रण क्रांति का, बिछने लगी बिसात।
भीषण विद्युत वेग से, होगा उल्कापात।।
अलक-अलक विषधर ललक,दुर्गा रूप प्रचंड।
सावधान होकर रहो, वरना देगी दंड।।
-लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली