नारी : एक अतुल्य रचना….!
” अरुणिमा नीरज कर रही है…
तेरी गुणों की गौरव गान…!
तू अद्भुत शक्ति की प्रतिरुप…
तू ही शक्ति..
तू ही विश्वस्वरुपा ,
तू ही सर्वशक्तिमान…!
तेरी रचना में ही छिपा है…
इस अदभुत दुनिया की विचित्र विधान…!
तू ही है जगत् जननी…
तू ही है सबकी हितकरणी…!
तेरी रुप-स्वरुप है विनाशित….
पर
तेरी शक्ति है अविनाशित…!
तू ही वैभव…
तू ही है अतुल्य-प्रेम की प्रतीक,
तू ही है..
अमूल्य जीवन निर्मल जलधारा…!
तू ही है..
सुख-दुख का अटूट किनारा…!
और
तू ही है अनुपम जीवन में ,
प्रीत भरी सरगम-संगीत…!
तू ही मन की अनुबंध,
और तू ही अमर-प्रेम की प्रबंध…
तूझमें..
जो सर्व सम् भाव स्वयं है निहित..
सारी दुनिया, है उससे पूर्णरुपेण परिचित…!
हर युग में तेरी शक्ति से ही…
हुई है जग की सकल सर्व उत्थान…
ममता की भाव भर…
जीवन को सुरभित कर,
अतुल प्रेम की समर्पण कर..
स्वयं की कर गई बलिदान…! ”
” सब कुछ खोया है तूने…
कभी कौरवों की चीरहरण से,
कभी राम जी की परित्याग से,
फिर भी…
नारी शक्ति की बीज बोया है तूने…!
सब कुछ खोया है तूने…
कभी मीरा बन, गरल घूट पीकर…!
कभी अग्नि-परीक्षा की तपन सह कर…
कभी चरित्रहीनता की…
प्रकोप वस्त्र पहन कर…!
मगर
कभी भी स्वयं को नहीं खोया है तूने…!
हे नारी शक्ति…
तेरी महिमा यत्र-तत्र है…!
तू ही अनुपम जीवन की…
अमूल्य धन यंत्र है…!
हर युग में..
अविनाशी प्रेम शक्ति की, हो साया…!
जीवन की बगिया में…
ममता प्रतिरुप की, हो परिछाया…!
जगत-जननी की, हो आधार…
कर गई तू , जगत की सकल उत्थान…!
तेरी शक्ति है, इतनी महान…!
तू ही इस जगत की सृजन करे…!
तभी तो जगत रचिता ब्रम्हा जी ,
तूझे सदैव नमन करे…!! ”
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