नारी अबला नहीं
कब तक यूँ ही नारी की अस्मत लूटी जाएगी?
कब तक अपनी ही गलियों में चलने से घबराएगी?
कब तक यूँ मशाल जलाकर न्याय माँगते जाएंगे?
कब तक यूँ ही Justice For….का नारा लगाएंगे?
क्या नारी को नरपशुओं ने इतनी अबला समझ लिया है?
क्या तुम भूल गये हो तुमको नारी ने ही जन्म दिया है?
ठहर जरा सुन, अबला नहीं ये दुर्गा है, माँ काली है,
जग का जीवन गढ़ने वाली, अद्भुत शक्ति नारी है।
कंस मरा, लंकेश मरा है, दुर्योधन का भी अंत हुआ है,
नारी से जो-जो टकराया सबका ही विध्वंस हुआ है।
ठहर, नरपशु अब नारी पर ज्यादा अत्याचार न कर,
सृष्टि की अनुपम कृति से इतना भी खिलवाड़ न कर।