नारी अबला नहीं अपितु वह ही तो है बल दाता !
नारी अबला नहीं अपितु वह ही तो है बल दाता !
वह ही माता वही विधाता वो ही तो सुख दाता,
उस से ही यह सृष्टि बनी है, उसकी सब कृति हैं,
तो फिर तुम्ही बताओ इस नारी में क्या बिकृति है,
महाशक्ति का रक्त सदा जो हम सब में बहता है,
वही रक्त तो भाई इस नारी में भी रहता है,
फिर क्यों भाई वह सदैव है यों उदास सी रहती,
और कहीं न कहीं सदा है यों प्रताड़ना सहती,
नारी नर की है सदैव ही अर्धांगनी कहाती,
फिर क्यों उसके जीवन में यों दुःख की सेज समाती !!