नाम हल्दीराम,पर हल्दी नहीं –आर के रस्तोगी
हल्दीराम हम गये,न हल्दी मिली न मिले राम
हमने पूछा काउंटर से,कहाँ है तुम्हारे हल्दीराम ?
कहाँ है हल्दीराम,जरा हल्दी का सेम्पिल दिखाओ
एक किलो हल्दी लेनी है,उसका हमे भाव बताओ ?
कह रस्तोगी कविराय,लोगो को क्यों गुमराह करते
रखा है नाम हल्दीराम,हल्दी ही नहीं तुम रखते
हल्दीराम की दूकान पर,लगी थी बहुत बड़ी भीड़
चारो तरफ निगाह घुमाई,मिली नही कही उछिड
मिली नहीं कही उछिड,एक सुंदर सी यवती बोली
सीट मेरे पास एक ओर है,पर हूँ मै यहाँ अकेली
कह रस्तोगी कविराय,भैया,सावधान यहाँ रहना
खाना खायेगी ये यवती,बिल तुमको यहाँ भरना
हल्दीराम हलवाई की जब से खुली यहाँ दुकान
ओर हलवाइयो का हो गया यहाँ फीका पकवान
हो गया यहाँ फीका पकवान,ग्राहक कम ही आते
आँखे मीच कर वे सीधे हल्दीराम के ही जाते
कह रस्तोगी कविराय,सुनो बस इतना करवादो
हल्दीराम के खाने में,जमालघोटा तुम डलवादों
हल्दीराम के बाहर सामने, खड़ी थी बाला एक
तकने वाले तक रहे थे,थी न द्रष्टि उनकी नेक
थी न द्रष्टि उनकी नेक,एक युवक आकर बोला
खाना खाओ तुम मेरे साथ, मै हूँ आज अकेला
कह रस्तोगी कविराय,युवक की पत्नी आ गई
वादा किया था मुझसे,इस चुडेल क्यों बिठाई ?
आर के रस्तोगी
मो 9971006425