नाम या काम
“नाम नही काम से जाने जाओ, अंततः काम ही काम आते हैं”
आदर्श कभीभी कहे या सुने नहीं जाते हैं समक्ष रखे जाते हैं
ये अमूल्य क्षण हैं जो इतिहास में स्वर्णाक्षरों से लिखे जाते हैं
आदर्शवादिता धर्म संस्कार है, जिस में किंतु परंतु नहीं होता
ये मनउपवन में लगे वो गुलाब हैं जो विवेक से सींचे जाते हैं
पुरुषार्थ कोई झलकी नहीं, जीवन जीने की स्वस्थ परंपरा है
जहां पुरुषार्थ आदर्श होता है, सुख शांति खिंचे चले आते हैं
धैर्य की प्रत्यंचा संग उत्कृष्टता की कमान व कर्मठता के तीर
आत्मबल और बुध्दिबल के समक्ष, सभी बाहुबल लजाते हैं
नाम बड़े और दर्शन छोटे जैसी कहावतों को झुठलाओ यारों
नाम नहीं काम से जाने जाओ, अंततः काम ही काम आते हैं
~ नितिन जोधपुरी “छीण”