नाम तुझे क्या दूँ मैं
कभी फूलों सा नर्म हो जाना
जख्म़ काँटों का कभी दे जाना
कभी तो रौनक ए महफिल तू बनी
गयी तनहाइयाँ देकर के कभी
हँसाया तूने कभी जी भर कर
फिर अश्क आँखों में गयी देकर
कभी तो प्यार के खिलाये कमल
गयी देकर कभी जुदाई के पल
जन्म तूने दिया कभी हँसकर
मौत फिर दे गयी बता क्यों कर
कौन सा रंग भरूँ किस तरह सजा दूँ मैं
जिंदगी तू ही बता नाम तुझे क्या दूँ मैं