नामालूम था नादान को।
पेश है पूरी ग़ज़ल…
तड़प कर ये दिल खूब रोता है!!!
बड़ा ही मजबूर होता है।।
नामालूम था नादान को।।
इश्क में इतना भी दर्द होता है!!!1!!!
खुशियां कुछ पल की होती है!!!
गम सदा साथ रहता है।।
छांव तो आनी जानी है।।
धूप में ही ये इंसा निखरता है!!!2!!!
वो इश्क इबादत सा करता है!!!
उसे खुद की खबर ना।।
पीरों के जैसे यहां वहां।।
फकीरी में वह घूमा करता है!!!3!!!
जब जिक्रे आशिकी होता है!!!
वह याद आ जाता है।।
ये जमाना भी हमेशा।।
बरबादियों को बयां करता है!!!4!!!
ताज मोहम्मद
लखनऊ