नादान बनों
बनना है तो नींव की ईंट बनो,
न बनो कभी ईंट कंगूरे की।
करना यदि प्रीत करो हरि से,
न करो कभी प्रीत असत जग की।
यदि पाना है ज्ञान नादान बनो,
न बनो गुरद्वारे सुजान कभी।
झोली खाली भरती है सदा,
गुरु आगे बनो न गुनवान कभी।
दीक्षा ले करो सुमिरन अविरल,
आज्ञा में विराम करो न कभी।
सेवक बन टहल करो उनकी,
सपने में करो नअभिमान कभी।
मानव जीवन दिन चार का है,
जग में न किसी का अपमान करो।
कर लो दृढ़ प्रीत गुरु चरनी,
जप नाम वैकुंठ पयान करो।
सतीश ‘सृजन’ लखनऊ.