नादान बचपन
कोमल तन
निश्चल मन
ऊँची उड़ान
लम्बे मैदान
कन्चे और
गिल्ली डंडे
माँ की डांट
मास्साब की डंडी
दोस्तों से मस्ती
हर चीज सस्ती
बाल दिवस की पीटी
गुछिया की पीठी
साईकिल के
पहियों की दौड़
गिरना कई मोड़
दादी की पूजा
प्रसाद की आस
दादा जी छड़ी
घुमने जाने
की आस
याद आते हैं
हे बचपन
तू बहुत
याद आता है
हे भगवान
तू लौटा दे
ये बचपन
आज के
बच्चों को
निकले घर से
भूले मोबाईल
हो दूर टीवी से
बचपन को
रहने दे
बचपन ही
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल