नादान दोस्त
1
मोती आज बहुत खुश था। उसे नया दोस्त जो मिल गया था। अब दिन भर उसी के साथ रहता ,उसे अपना खाना खिला देता,उससे ढेर सारी बाते भी करता। पर मोती की बातें उसके दोस्त को समझ आये न आये पर मोती के प्यार और उसकी निर्मलता ने उसे अवश्य मोह लिया । चार साल का मोती और चार महीने का उसका दोस्त एक मेमना।
मोती के दिन के शुरुआत उस मेमने से होती और रात की नींद उस दोस्त को अपने कोमल हाथों से उसको बाहों में भरकर । कभी अगर रात होती और मोती जल्दी सो जाए तो मेमना भी इधर उधर अपने दोस्त को खोजता और मोती के प्रेम से भरे स्पर्श को पाने के लिए व्याकुल हो उठता। उसे कई बार इसी व्याकुलता के साथ राते काटनी पड़ती।
मोती को अगर कोई कहता कि ये मेमना तो मेरा है मैं इसे ले जाऊंगा तो मोती उसे दिन भर अपने से दूर न रखता और अगर कोई उसके पास आता तो अपने दोस्त को बाहों में जकड़ लेता व कहता “ये तो मेला है इसे मैं तहि नहीं ले जाने दूंगा।”
2
मनोहर और उसकी पत्नी चंपा आज प्रातः जल्दी ही उठ गए थे। आज उनकी बेटी को देखने लड़के वाले जो आ रहे थे। कहीं कोई कमी न रह जाये इस चक्कर में वो कई दिनों से ढंग से सोए नहीं थे। आज वो दिन आ गया था और चंपा अपनी बेटी सुमन को जगाकर स्वयं साफ-सफाई और फिर मेहमानों के लिए व्यंजन बनाने में व्यस्त हो गयी। मनोहर मेहमानों की आवाभगत और अपने बड़े भाइयों के परिवार को भी बुलाने व आवश्यक सामान की पूर्ति के कार्यो में लग गया। सुमन जिसको लड़के वाले देखने आने वाले थे अपनी सहेली को बुलाती है और फिर तैयार होने लगती है।
अपने दिए हुए समय के कुछ देर पश्चात लड़के वाले आते है और मनोहर व उसका पूरा परिवार उनकी सेवा में लग जाता है। लड़के वाले लड़की को बुलाने का कहते है व कुछ ही देर में सुमन अपनी नवीन पोशाक और कुछ गहनों से सुसज्जित होकर हाथ में ट्रे पकड़े चाय लाती है और सभी को परोसती है। जैसे कोई ग्राहक किसी सामान को पसंद करता है और सामान बिना बोले ही उसका हो जाता है भारतीय समाज में अधिकांश घरों में इसी तरह लड़की के साथ भी होता है। सुमन दिखने मैं बहुत ज्यादा सुंदर भले ही न थी लेकिन उस लड़के के लिए तो बहुत ही सुंदर थी जिसको बहुत कोशिशो के बाद भी लड़की न मिली हो।
सुमन को लड़के वालों ने एक अच्छी वस्तु की तरह पसंद करके खरीद लिया पर विडम्बना यह थी कि खरीदने के पैसे तो लगे नहीं ऊपर से दहेज के रूप में सम्पति अलग से मिली।
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मोती ने आज पूरा दिन रो के गुजारा। वह दिन भर इधर-उधर देखता रहता कि उसका दोस्त उसे मिल जाये पर न मिला। वह कभी अपनी मम्मी से पूछता तो कभी पापा से ,पर उसे मोती मिला न मोती का ठिकाना। उसकी दशा एक विरहणी नारी जैसी हो गयी जिसका पति उसे छोड़ कर चला गया हो। वह इतना सा मासूम अपने मृदुल हृदय में अपने मित्र की उन प्यारी स्मृतियों को याद करता और उसके पास जाने की जिद्द करने लगा। प्रातः से दोपहर हो गयी पर उसने अपने मित्र के बिना भोजन तक नहीं किया। आखिर थक हारकर और भूख से व्याकुल होकर वो अपने पापा की गोद में बैठ गया और खाना खाने लगा। उसकी थाली में वही कल वाली सब्जी थी जो उसकी बहन सुमन के होने वाले ससुराल से आये हुए मेहमानों के लिये बनाई हुई थी। वह बेचारा निर्मल और नादान हृदय क्या जाने की जिस मित्र की तलाश वो दिन भर कर रहा था वो ही इस सब्जी का मुख्य भाग था।