नादान ज़िंदगी
बड़ी मायूस सी रहती है मेरी ज़िंदगी,
मुझसे कहती है हरदम,
परेशान हो चुकी हूँ ,
तुझे सवांरते – सवांरते,
तेरी खामियों को नजरअंदाज करते करते
नादान है मुझसे शिकायत कर लेती है,
क्या बताऊँ उसे कि कुछ उलझी सी हूँ ,
मैं भी उसकी परेशानियों को सुलझाते-सुलझाते,
अधूरी सी रह गई हूँ मैं भी,
उसकी ख़्वाईशों को पूरा करते करते,
चाहती है वो कि मैं चलूँ उसके बनाये रास्ते पर
यह रास्ते मुझे उससे ही दूर ले जाते हैं,
काश थोड़ा समझ पाए वो कि,
रास्ते ये उसके मर्जी नहीं मेरी,
तौर – तरीके मैं उसके निभा रही हूँ
तुमसे मिलते- मिलते ऐ ज़िंदगी,
एक अरसा बीत चुका,
खुद से खुद का हाल भी नहीं पूछ पाई हूँ,
अरमान ये तुम्हारे,
बोझ उसका मैं ढो रही हूँ
निराश हो तुम फिर भी,
पूछती हो मुझे मैं तेरे लिए कर ही क्या पाई,
काश के तुम समझ पाओ कभी,
मैं हताश हूँ तुमसे,
तुम निराश हो मुझसे
परेशान हम दोनों है एक दूसरे से,
थोड़ी नासमझ है नादान,
शिकायत करने का हक़ पूरा तुझे ही दे रखा है
हाँ कसूर है मेरा के मैं तेरे मापदंडों पर,
खरी नहीं उतर पाई,
पर क्या ऐ ज़िंदगी
तुझे थोड़ी भी परवाह है,
कि मैं तुझसे क्या चाहती हूँ …….