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18 Nov 2020 · 1 min read

” नादानी “

संस्मरण

मैं दस – ग्यारह साल की थी हमारे घर से सटा जो घर था उसमें एक बूढ़े दंपति रहते थे उनका घर बन रहा था , मैं छत से खड़ी होकर उनके घर में झाँकती थी और ये देख कर आश्चर्य करती थी की ये जो बूढ़े व्यक्ति अपने घर का कितना काम करते हैं…बाहर आँगन में ही खाना बनाते थे , झाड़ू लगाते , शाम को चारपाई लगा बिस्तर लगाते , मेरे लिए ये सब बहुत अनोखा था । अपने घर में तो कभी बाबू ( पिता ) को काम करते देखा नही मैं जब भी झाँकती वो बूढ़े व्यक्ति मुझे उपर से झाँकते हुये देखते और बड़बड़ाते , मै जाकर अम्माँ को बताती…अम्माँ पता है जो बगल वाले बुढ्ढे हैं वो झाड़ू लगाते हैं , खाना बनाते हैं , बिस्तर लगाते हैं उनकी पत्नी तो कुछ नही करतीं लेकिन हमारे घर में तो तुम ही सब काम करती हो ? अम्माँ ने जब मेरे मुँह से ये बातें सुनी तो वो बगल में गई और मिल कर आईं फिर मुझे बताया की बगल वाली बूढ़ी महिला बीमार हैं उनका इलाज चल रहा है इसलिए वो काम नही कर पाती हैं । मुझे अपनी नादानी का एहसास हुआ उस दिन के बाद से मुझे उन बूढ़े व्यक्ति के लिए विशेष आदर का भाव जागा बड़ी होने पर उनका अपनी पत्नी के प्रति प्यार समझ में आया , काश सब पुरूष ऐसे ही होते ।

स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 01/11/2020 )

Language: Hindi
1 Like · 4 Comments · 1138 Views
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