नाजुक -सी लड़की
नाजुक-सी लड़की
प्रयागराज ट्रेन में बैठे हुए दस मिनट भी नहीं हुआ था कि एक नाज़ुक-सी लड़की लगभग भागते हुए ट्रेन में चढ़ी और हमारे ही कम्पार्टमेन्ट में आकर बैठ गई। उसके बग़ल में एक बुजुर्ग आदमी भी आकर बैठ गया।
हम लोगों को लगा कि शायद वह उस आदमी की बेटी
होगी। उस लड़की के पैरों में चप्पल नहीं थी, जिसका
मुझे बहुत दुख हो रहा था कि कैसा बाप है अपनी बेटी
के लिए चप्पल तक नहीं खरीद सकता। वह लड़की
देखने में बहुत ही सुन्दर थी। उसके कपड़े भी ठीक-ठाक ही थे पर चप्पल? फिर लगा कि शायद
उसकी चप्पल जल्दीबाजी में घर में ही छूट गई होगी।
रात करीब साढ़े दस बजे सभी यात्री खाना खाने
की तैयारी करने लगे। इसी बीच वह बुजुर्ग आदमी वहां
से चला गया था। अब उस सीट पर केवल वह लड़की
ही बैठी थी। अब वह बहुत डरी हुई लग रही थी। हम
लोग भी उसे अकेला देख कर परेशान हो गए।
बेटा आपके पापा कहां गए?
कौन पापा?
वही जो तुम्हारे पास बैठे थे?
मैं अकेली हूं, मेरे साथ कोई नहीं है।
अकेली क्यों?
अब वह फूट-फूट कर रो पड़ी। पता चला कि वह अपनी मम्मी से नाराज़ हो कर भाग आई थी।
अब क्या किया जाए। इतनी रात में उसे अकेले किसी
स्टेशन पर उतारना भी सही नहीं था।
इतने में ही टी टी भी वहां आ गया। उस लड़की को अकेला और बिना टिकट देख कर वह उसे अगले स्टेशन पर ट्रेन से नीचे उतरने के लिए कहने लगा। अगला स्टेशन था कानपुर और रात बारह बजे कानपुर उतर कर वह अकेली लड़की जाती तो जाती कहां?
लड़की डर से और भी घबरा गई। उसकी उम्र यही कोई
बारह-तेरह साल की ही रही होगी। लेकिन उसके कदम
कितने कठोर थे। बालबुद्धि ने यह भी नहीं सोचा कि
आखिर भागकर वह जायेगी कहां?पूछने पर पता चला कि उसका घर रेलवे स्टेशन के नजदीक ही है।
अब एक विषम परिस्थिति हम लोगों के सामने आ खड़ी हुई थी। इलाहाबाद का ही एक आदमी कुछ
सामान खरीदने दिल्ली जा रहा था। उसे एक दिन बाद वापस इलाहाबाद आना था। हम लोगों ने तय किया कि नहीं वह लड़की कानपुर में नहीं उतरेगी। उसे
साथ ही ले जाएंगे और दूसरे दिन शाम को उस आदमी के साथ उसे वापस इलाहाबाद भेज देंगे। स्टेशन से वह लड़की अपने घर स्वयं चली जाएगी। वह लड़की अपनाघर रेलवे स्टेशन के पास ही बता भी रही थी। टीईटी एक शरीफ़ आदमी था उसने हमारी बात मान ली। हम लोग उस लड़की को अपने घर ले आये। यहां पर उसे पहनने के लिए कपड़े और चप्पल भी खरीद कर दिया। वह दोनों दिन मेरे साथ मिलकर घर का काम कराती रही और साथ ही यह भी कहती रही कि आंटी मुझे वापस नहीं जाना है। लेकिन दूसरे की अमानत मैं अपने पास कैसे रख सकती थी। दूसरे दिन शाम को उसका टिकट था उसे उस आदमी के साथ इलाहाबाद भेज दिया गया साथ ही नसीहत भी दिया कि घर पहुंच कर फोन करा देना।
अगले दिन सुबह उस आदमी का फोन आ गया कि उस लड़की को स्टेशन पर छोड़ दिया है वह अपने घर चली गई है लेकिन उस लड़की ने अपने माता-पिता से फोन नहीं कराया जबकि उसे अलग से फोन नं दिया गया था। वह अपने घर सुरक्षित पहुंची कि नहीं यह काफी समय तक मन में खटकता ही रहा। उस लड़की को अपने घर का फोन नम्बर भी नहीं याद था कि उसके माता-पिता से बात किया जा सकता। वह नाजुक -सी लड़की अब भी आंखों के आगे घूम जाती है।
डॉ.सरला सिंह “स्निग्धा”
दिल्ली