नाजायज जायज लगे (दोहा मुक्तक)
नाजायज जायज लगे, जायज न्यायविरुद्ध !
जहाँ भावना मर्म की, होती नहीं विशुद्ध !!
करें बुराई का सदा,खुलकर मित्र विरोध ,
पडे जरूरत कीजिए, खातिर उसकी युद्ध!
रमेश शर्मा
नाजायज जायज लगे, जायज न्यायविरुद्ध !
जहाँ भावना मर्म की, होती नहीं विशुद्ध !!
करें बुराई का सदा,खुलकर मित्र विरोध ,
पडे जरूरत कीजिए, खातिर उसकी युद्ध!
रमेश शर्मा