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22 May 2022 · 1 min read

ऑर्केस्ट्रा वाली

वो नाचती है
तुम्हारे मनोरंजन के लिए
पर उसे अपनी जागीर
न समझ लेना।

बेशर्म,हवस भरी नज़रों से
उसकी असमत मत नोचना।
वो भी बहन है, बेटी है
तुम्हारी नहीं तो किसी और की।

चंद रद्दी भूरे-हरे,नीले-पीले
कागजों के गुमान में
मूँछों पे ताव दे मर्दानगी की शान में
छू न देना उसका बदन, और
खो न देना अपने पुरखों का मान-सम्मान।

हाँ वो नाचती जरूर है
मर्ज़ी या मज़बूरी
जैसे भी!
पर बिकने वाली नहीं
तुम्हारे कड़क चमकदार नोटों और
रद्दी, घटिया चरित्र के एवज में।

ज़ुबाँ है उसके पास
और बोलने की हिम्मत भी।
कह देगी, “खरीद लिए हैं का”
डबडबायी पर रौद्र आँखे लिये।

फिर क्या कहोगे?
-अटल©

Language: Hindi
4 Likes · 222 Views
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