नागों की क्या बात करें
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देखें व्यंग एक गीतिका के माध्यम से
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नागों की क्या बात करें हम,जब इंसां ख़ुद बिषधर हो।
पापों की क्या बात करें अब,जब पापी ही सहचर हो।।(१)
बेच रहे हैं माल झूठ का ,नेता भरी बजरियाँ में,
सच कैसे टिक पायेगा जब,झूठ बोलता रहबर हो।(२)
रिश्तों में नित ढूँढ रहे हैं,लोग यहाँ अपना कोई,
फिर भी मिला नहीं है अपना,चाहे जितना लश्कर हो।।(३)
टूटी सड़के और खडंजे,गड्ढों में रस्ते दिखते,
बने हुए हालात वही हैं,चाहे जितना भी कर हो।(४)
बाबाओं के चोलों में अब,किया बसेरा ढोंगों ने,
फिर भी बाज नहीं आते वो,चाहे कैसा मंजर हो ।(५)
करमवीर अपनी करनी से,कभी नहीं हटते पीछे,
फूल उगा देते हैं फिर भी ,चाहें भूमी बंजर हो।(६)
?✍️अटल मुरादाबादी?✍️