नागिन
नागिन
नागिन बन आई आंगन
डसने लगी बेकार मुझे।
कितनों आई जीवन में ,नागिन
करता हूं मैं प्रणाम उन्हें।
सम्मान तुम्हारा भी करता हूं
पाप कर्मों से भारी डरता हूं ।
हे नाग लोक की देव कन्या
तेरे आने से भी मैं डरता हूं।।
क्यों आईं हैं आंगन मेरे
क्यों लगती है बलात् छुने।
कितनो आई जीवन में
दुर से करता हूं प्रणाम तुन्हें
।
जानता हूं,
तू नागलोक से दौड़ आई है
जहर मौत को संग लाई है।
क्यों है भुखी तू मेरे तन का
क्या तू काल बनकर आई है।।
निकल यहां से है चंडालिन
किसने भेजा है यहां पर तुम्हें।
कितनों आई है जीवन में
दुर से करता हूं प्रणाम उन्हें ।।
हे काल रात्रि काल देवी
तू मेरा कालबन आई है।
हे नागिन है नाग देवता
यह डंडा लिये कलाई है।।
डॉ विजय कुमार कन्नौजे अमोदी आरंग ज़िला रायपुर छ ग