नाकाम व्यवस्था
जमाना सख्त होकर जब किसी को सताएगा
तभी कोई लड़े जंग और तलवारे उठाएगा
व्यवस्था हो चली नाकाम इतनी आज ऐसी क्यों
उठा आवाज अपनी बात कोई तो सुनाएगा
अमीरों ने किया शोषण गरीबों का हमेशा ही
कब्रों पर क्यों भवन ऊँचे गगनचुम्बी बनाएगा
सुधर पाये न यदि हम जिन्दगी दूभर होगी
समय की माँग को तब वक्त कैसे फिर चुकाएगा
समझ उसको खिलोना जब जमाना खेल खेलेगा
उतर कर कों धरा पर हौसला उसका बढ़ाएगा