नही चाहिए ऐसे बादल
शीर्षक
नही चाहिए ऐसे बादल
अब बादल बरसते नहीं
अब बादल फटते हैं
कहर ढाते हैं
जाने कबसे नहीं देखी
वह सुहावनी रिमझिम
सतत फुहार , प्रिय की मनुहार
सावन का अपना संसार
बरखा का अलग परिवार
अब बादल खिझाते हैं , दर्द बढाते हैं
नदी नाले उफ़नाते हैं
लाखों लोगो को
काल के गोद में सुलाते हैं
नहीं चाहिए ऐसे बादल
हलधर की धड़कन बढ़ाते हैं
कर्जे में कर्जा बढ़ाते हैं
गरीब की झोपड़ी में से झांककर
कहर बरपाते हैं ,भूखा सुलाते हैं
हल्कू हो या होरी
देखते रहते हैं बेटियो को
जवान होते , टालते रहते हैं
इनके विवाह और न्योते ,
नहीं चाहिए ऐसे बादल ,
पूंजीवाद के पक्षधर
समाजवाद के विरोधी
दुर्घटनाओं के संवाहक
आफत ,गरीबी के वाहक
नहीं चाहिये ऐसे बादल
कहा जाता है कि
प्रकृति से खिलवाड़ ,
और अप्राकृतिक जुगाड़
परिणाम
कंक्रीट में बदलते जंगल
पशु ,पक्षियों का देश निकाला
भूगर्भीय लूट ,
अराजकता की प्रवृत्ति को छूट
और न जाने क्या क्या
पर जिम्मेदारों को नहीं आती
शर्म और हया
भुगतता है कृषक
झोपड़ी , मजदूर, मजबूर,
जिनकी पहुँच से
उनके श्रम का असल मूल्य कोसों दूर
नहीं चाहिए ऐसे भेदभाव वाले
बादल
प्यासी धरती कब तक रहेगी
बरसों हो गए बादलों को
बादल अब बरसते नहीं है।
बस एक बूंद की प्यासी है धरती
और धरती को बादलों से कोई गिला नहीं है
बादल बरसे थे
सालों पहले सावन में
परम आनंद आया था
वो भी क्या दिन थे
जब आखरी बार
बादलों ने धरती को अपना
मधुर संगीत सुनाया था ।
इंद्रधनुष दिखाया था
बरसात में अक्सर दिख जाते थे
जुगनू , तारे तो बादल से ढके रहते थे
बच्चे पकड़ लेते थे , एक प्रकाश पुंज
अब शायद सब लुंज पुंज
सदियों से नहीं देखे .
ये अदभुत नजारे
नई पीढ़ी इस परम् आनन्द से वंचित
कपोल कल्पित लगता है ,उन्हें सब बताना
बस अपनी खिल्ली उड़वाना
इतने अभिशप्त होगी मनु की संतान
कभी नहीं सोचा , पर दोषी कोई नहीं
सिवा अपने,
बबूल बोने पर आम नहीं उगते
भूल जाता
कोई क्या जाने
सालों के इंतजार का कब अंत होगा
कब आएगा वो दिन
कब फिर से वही आनंद होगा
कब सुनायी देगी ,
झींगुरो की सीटी
मेढकों की टर्र टर्र
सीता की एक साथ निकली लटें
केंचुए के गुच्छे
रात का सन्नाटा
विलासिता पर तमाचा
कब होगा ,जब भी हो
नहीं चाहिए ऐसे बादल
अपने मे मस्त
बाकी सब पस्त
क्रमश देखना चाहता हूं
वर्षा सुंदरी के पूरे नृत्य
साथ भुट्टे का स्वाद
भजिए ,पकोड़े की शाम
नए आम के अचार की
सोंधी महक, मनहर स्वाद
पर अब
अपने अपने
कमरे में बंद , मोबाइल के साथ
एकाकी , संवादहीनता
के बादल ,बैक्टीरिया बाले
नहीं चाहिए ऐसे बादल
सब जुड़ें ,नाचें पहली बरसात
आलिंगन की रात
कोई क्या जाने
धरती की प्यास मिटाने
कब आएगी वो एक बूंद
कोई क्या जाने
बादलों को धरती से फिर कब इश्क होगा
बहुप्रतीक्षित आलिंगन के साथ
मेढ़क ,मछली, मोर पपीहा , कोयल
हरियाली , मर्यादित बरसते बादलों को देख
होँगे खुश
आनन्दित ,प्रफुल्लित ,हर्षित ,मोदित,
फिर
विनाश नहीं ,प्रकाश होगा , अहिस्ता आहिस्ता
कागज की नाव , तैरती दिखेगी
बरसात के पानी में , बहेगी नहीं
बच्चा दौड़कर उठा लेगा
जब भी चाहेगा ।
श्रद्धालु आ सकेंगे
लौटकर सकुशल
चाहे अमरनाथ हो या केदारनाथ
नहीं खोलेंगे तीसरा नेत्र
भोलेनाथ , भरपूर होगा
धनधान्य , सब रहेंगे साथ साथ
कोई नहीं छूटेगा कहीं
पकड़ें रहेंगे एक दूसरे का हाथ
आशाओ के संचार के साथ
बरसता रहेगा पानी
,कहलाएगी खुशनुमा बरसात।
बस मुंह देखकर नहीं बरसे बादल
न रुक जाए कोठी देखकर।