नही चाहता
सब कुछ त्याग कर मैं पत्थर नही बनाना चाहता
इंसान ही ठीक हूँ मैं ईश्वर नही बनाना चाहता
रिस्तों को निभाते निभाते मैं बर्बाद हो गया हूँ
अब रिस्तों के लिये खुद को मिटाना नही चाहता
उनको यादों करके मैं शामो सहर परेशान रहा हूँ
अब जमाने की खातिर उन्हें भुला लूटना नही चाहता
हर किसी शख्स से मैं सदा प्रेम करता रहा हूँ
लेकिन उनकी खातिर मैं उसे भुलाना नही चाहता
अगर उनसे रिस्ता न तोड़ पाना मेरी खुदगर्जी है
तो खुदगर्ज ही ठीक हूँ परोपकारी नही बनाना चाहता
मुझे किसी के दिल मे मोहबत का दीपक बन जलना है
मैं किसी आरती के थाल में नही सजना चाहता
श्राद्ध विश्वास त्याग और समर्पण सब बेकार की बात है
ऋषभ इन चोचलों में पड़ कर उसे खोना नही चाहता