नहीं होते यूं ही रिश्तें खत्म
नहीं होते यूं ही रिश्तें खत्म
ना ही होता उनका मर्डर,
रूह से जुड़े विश्वास भरे
अनमोल रिश्ते होते हैं अमर।
सहकर कहकर साफ सदा
इन्हें सहेजे रखना
बुरा न मानों स्नेही जन का
इन्हें सजाए रखना।
होते जितने रिश्ते मधुरम ,
मधुरम उतना दिल होता
हार नहीं होती है उनकी ,
नहीं कभी भी खत्म होता।
वैसै ही सखा भाव का रिश्ता
बिनस्वार्थ अमर बेल सा पनपता
मांगा नहीं दिया है सब कुछ देता,
बिल्कुल कृष्ण-सुदामा कि जो कथा।
मीत मित्र संग जोर से बेहतर ,
सेवा सहित सत्कार मिले ।
खुशी मिलें खुश रहें,
काम नाम जीवन फूले फले।
सब रिश्तों में निहित स्नेह
दौ और चार गुनी बढ़े नेह
सकता है वहां रह जब धैर्य
स्वर्ग भी आता है वहां रहने
पति पत्नी का रिश्ता होता ,
एक सिक्के के दो पहलू ।
इक दूजे के मन में होता,
साथी का मैं दुख सहलूं ।
कोई विपदा आन पड़े
खड़ा दिखाई देता है।
आसानी वा सहज भाव से ,
विजय प्राप्त कर लेता है।
दुखी नहीं अपनों की बातों से
सहजता से उदासी समेट लेता है
दिल ना दुःखे मेरे अपनै मीत का
ग़म पी लेता स्वयं,मुस्कान देता।
-सीमा गुप्ता अलवर राजस्थान ै🌷🌹