नहीं है
निगाहें वही पर मोहब्बत नहीं है ।
दिलों में किसी के वज़ाअत नहीं है ।
नक़ाबों के पीछे छिपाते हैं सूरत,
शरीफ़ों के अन्दर शराफ़त नहीं है ।
न पर्दा रहा ना हया अब नज़र में,
हसीनों में अब तो ये आदत नहीं है ।
तरीके नये खोजते मौत के सब,
सलीके से जीने की हसरत नहीं है ।
दबी कहकहों में ये आहें मिलीं पर,
करें कद्र रिश्तों की फुर्सत नहीं है ।
जहां में सभी देख मशगूल खुद में,
किसी को किसी की ज़रूरत नहीं है ।
कलम रो रही आज “अरविन्द” देखो,
इसे और लिखने की हिम्मत नहीं है ।
✍अरविन्द त्रिवेदी
महम्मदाबाद
उन्नाव उ० प्र०