महँगाई
हमारी जान जाती है न जाती है ये महँगाई
नई सरकार बनते फिर रुलाती है ये महँगाई
यहाँ हर बात में यारों ख़ुशी हम ढूँढ लेते हैं
मगर सर दर्द रोजाना बढ़ाती है ये महँगाई
चलन अब बंद करना है रिवाजों में दिखावे का
चढ़ाते लोग हैं लेकिन गिराती है ये महँगाई
कमाई आजकल ईमान वालों की घटी है पर
ठगों की राह में मखमल बिछाती है ये महँगाई
कहीं ‘आकाश’ जाओ तुम मिलेगा कुछ नहीं सस्ता
सभी को एक उँगली पर नचाती है ये महँगाई
– आकाश महेशपुरी
दिनांक- 17/05/2022