नहीं रुकता बुलंदी पर
नहीं रुकता बुलंदी पर पहुँचकर लौट आता है
उछालो लाख तबियत से ये पत्थर लौट आता है
कभी सागर,कभी पर्वत,कभी आकाश या जंगल
परिंदा हो कहीं भी शाम को घर लौट आता है
मोहब्बत हो या नफरत बाँट दो पर ये समझ लेना
जो दोगे दूसरों को वो पलटकर लौट आता है
रहे नाराज कितना भी मगर पुचकारने पर ही
ये बच्चा गोद में वापस सिमटकर लौट आता है
चला जाता है जो उसकी कमी पूरी नहीं होती
हाँ इतना है कि यादों में वो अक्सर लौट आता है
गया जो छोड़कर दुनिया न उसकी फिक्र कर संजय
वो इस दुनिया में फिर चेहरा बदलकर लौट आता है