नहीं मैं -गजल
ग़ज़ल:
गीत कोई नया गाता नहीं मैं।
शेर कोई नया सुनाता नहीं मैं !
होंठों पे खामोशी की जमी हुई पर्त,
बिना मतलब के हटाता नहीं में |
दिल धड़कता है बेखयाली में ,
दिल को यकीन दिलाता नहीं मैं।
रुसवा हुई ये ख़िदमत बेख़ौबी,
दर्द के अफसाने सुनाता नहीं मैं।
ये शहर भी था इश्क़ से बेख़बर,
बिन तेरे कोई ख़्वाब सजाता नहीं मैं।
राहों में ,हजारों मोड़ हैं अंधेरों के
अंधेरी राहों में दिए जलाता नहीं मैं।
आँखों में यूँ तो सूख गए हैं आंसू ,
इश्क़ की बेबसी जताता नहीं मैं।
जाम पीने का असर बेनतीजा ,
पीकर खुद को बहलाता नहीं मैं।
दिल के अफसाने हैं बोझिल से ,
यूँ ही दिल को लगाता नहीं मैं।
यु तो फीका पड़ा है इश्क का रंग ,,
इश्क़ में कोई रंग मिलाता नहीं मैं।
शहर की दीवारें भी हो गयी बहरी ,
दर्द खुद का कोई जताता नहीं मैं।
आसमां की हदें हैं ‘असीमित,’
ख्वाबो को अक्स दिखाता नहीं मैं।