नहीं पिता सम है दूजा दानी
जो दान कन्या का देता है तो नही पिता सम है दूजा दानी।
वो दान देके भी हाथ जोड़े लो सौंप दी तुमको जिंदगानी।।
दिया कलेजे का एक टुकड़ा मगर वो लोभी है धन से तोलें
दे हर पिता बढ़के हैसियत से कि बेटी से मीठे बोल बोलें
गरीबी के ताने रोज सहती यही है औरत की बस कहानी।
लिया जनम बेटी ने जहाँ पर विदा हुई हो गयी पराई
वो आज माता पिता से मिलने पति इजाजत है लेके आयी
करे है सबके वो आगे आगे रही जो मैके में बनके रानी।
वो बातो बातो में मुस्कुराना कहाँ गयी है वो खिलखिलाहट
दिखाए झूठी हंसी लवों पर गमो की न आने देती आहट
जो सीख आयी है दर्द छुपाना वो हो गयी है बड़ी सयानी।
श्रीमती ज्योति श्रीवास्तव साईंखेड़ा