नहीं पिता के हिस्से आया (नवगीत)
नहीं पिता के हिस्से आया
नहीं पिता के हिस्से आया
कभी कोई इतवार
राशन के थैले में लाता
हर संभव मुस्काने,
उसके अनुभव के साँचे में
ढलती हैं संतानें,
उसके दम से माँ की बिंदी
बिछिया, कंगना, हार
नहीं पिता के हिस्से आया
कभी कोई इतवार
घर के खर्चे हुए सयाने
बिगड़ गयें हैं थोड़ा
हारी-बीमारी ने अबकी
दामन कब है छोड़ा?
रही जूझती स्वेद ग्रंथियाँ
मेहनत से हर बार
नहीं पिता के हिस्से आया
कभी कोई इतवार
झुकी पीठ पर लदे हुए हैं
कर्ज़ औ’ फर्ज़ तमाम
इच्छाओं की सूची लंबी
पैंडिंग है आराम,
चिंताओं की वर्ग पहेली
फिर सुलझी न इस बार
नहीं पिता के हिस्से आया
कभी कोई इतवार
मीनाक्षी ठाकुर, मिलन विहार,मुरादाबाद