* नहीं पिघलते *
** गीतिका **
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नहीं पिघलते हैं कभी, पत्थर दिल इन्सान।
मुखड़े पर आती नहीं, स्नेह भरी मुस्कान।
प्रस्तर प्रतिमा भी सहज, मन को लेती जीत।
उससे बढ़ जाती सदा, देवालय की शान।
पत्थर डूबा तो रहा, जल में वर्ष अनेक।
फिर भी सूखा ही रहा, किया न जल का पान।
नज़र कभी आता नहीं, सह लेता सब भार।
किंतु पत्थर नींव का, होता बहुत महान।
पत्थर की महिमा बहुत, लाख टके की बात।
भाव हृदय के सत्य हों, मिल जाते भगवान।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य