नहीं टिकाऊ यहाँ है कुछ भी…
नहीं टिकाऊ यहाँ है कुछ भी मगर इसी से लगाव देखा
लहू के मानिंद चाहतों का रगों रगों में बहाव देखा
युगों युगों से रही मुसलसल ये पूर्णता की तलाश लेकिन
हुआ मुकम्मल कभी न कोई नज़र नज़र में अभाव देखा
– आकाश महेशपुरी
दिनांक- 13/06/2024