नहीं कोई लगना दिल मुहब्बत की पुजारिन से,
ग़ज़ल _नहीं कोई लगना दिल मुहब्बत की पुजारिन से,
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करें किससे शिकायत अब सितमग़र तुम जरा सुनलो।
नहीं होती इनायत अब सितमग़र तुम जरा सुन लो।
नहीं होता यकी अब तो फकत झूठी वफाओं पर,
लगी होने अदावत अब,सितमग़र तुम जरा सुन लो।
करें फ़रियाद हर दर पे तिरे महफूज होने की,
नहीं होती इबादत,अब सितमग़र तुम जरा सुनलो।
बड़ा मासूम सा चहरा,लबों पे सुर्ख खामोशी,
लगे ढाने कयामत अब सितमग़र तुम जरा सुनलो।
कि बेपर्दा हुए देखा तुम्हें गैरों की’ महफिल में,
लगी होने जलालत अब, सितमग़र तुम जरा सुनलो।
नहीं कोई लगना दिल मुहब्बत की पुजारिन से,
यही होगी बगावत अब सितमग़र तुम जरा सुनलो।
चले थे छोड़ने हम क्यों किसी ममता की’ मूरत को,
वही होगी जियारत अब, सितमग़र तुम जरा सुनलो।
✍शायर देव मेहरानियाँ _ राजस्थानी
(शायर, कवि व गीतकार)
Mob _7891640945
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