नहीं कोई यहाँ अपना
***नहीं कोई यहाँ अपना***
***********************
नहीं कोई यहाँ अपना है,
सज़ा झूठा रखा सपना है।
बता तो दो तरीका ऐसा,
भला कैसे सुखी रखना है।
जिगर में आग की लपटें हैं,
बताओ कब तलक जलना है।
रहे वो रेंगते बन कर सर्प,
पिला कर दूध बस डसना है।
बचा भी क्या यहाँ कुछ बाकी,
सितम उसने अमल करना है।
चढ़े बलि खूब हम मनसीरत,
किसी से अब नहीं डरना है।
***********************
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)