नहीं किया अपमान
लिखा नहि किसी का विरद, नहीं किया गुणगान।
नहीं किसी को खुश किया, नहीं किया अपमान।।
नहीं किया अपमान, व्यर्थ ही रंजिश मानें।
क्यों कर हुये चुटैल, बात यह प्रभु ही जानें।।
मैंने बस वह कहा, बतौर कवि मुझको दिखा।
नहीं किया अपमान, नहि विरद किसी का लिखा।।
जयन्ती प्रसाद शर्मा