नहीं कहीं भी पढ़े लिखे, न व्यवहारिक ज्ञान
नहीं कहीं भी पढ़े लिखे, न व्यवहारिक ज्ञान
सोशल साइट्स पर दे रहे, भैया जमकर ज्ञान
दे रहे जमकर ज्ञान,बबूल में भटा लगावें
खुद भी भटक रहे दुनिया में, औरों को भटकावें
बड़ी तकरीरें ज्ञान विज्ञान बतावें
विला वजह की बातों में,जब देखो उलझावें
वर्षों से बीमार पड़े हैं, सबको दवा बतावें
ऊल-जलूल सी पोस्ट करें,नित नूतन रील बनावें
नहीं रियल से मतलब कोई, ऐसे स्वप्न दिखावें
राजनीति साहित्य संस्कृति और आध्यात्मिक बातें
सरोकार है नहीं समाज से, करते वेढंगी बातें
पढ़े लिखे कहलाते हैं, उलझे हैं दिन और रातें
सुरेश कुमार चतुर्वेदी