नसीब
नसीब ने कभी मुझे ख़ुशी का पल दिया नहीं।
अमीर आज भी हूँ मैं कि मुझको कुछ गिला नहीं।
कभी तो मुड़के आयेगा इसी उमीद पर ही तो।
सुलग रहा हूं आज भी कभी तो मैं बुझा नहीं।।
मिटा रहा वो रोज इक निशानियां मेरी सभी।
लिखा जो दिल पे नाम था वही मगर मिटा नही।
पुकारता हूँ आज भी तुझे ही तो सनम मेरे ।
सिवा तेरे किसी पे दिल ये आज तक लुटा नही।
कली वो बदनसीब जो बहारों में नही खिली।
वजूद ही नही मेरा कि तूने जो छुआ नही
कि रेत के टीले यहाँ है रेत की ही जिंदगी।
वफ़ा का एक भी यहाँ बचा कोई निशां नहीं।
आरती लोहनी
मोहाली।