नसीब
नसीबा साथ देता है तभी दिल दिल से मिलता है।
मगर यह बात भी सच है बड़ी मुश्किल से मिलता है।
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कशिश जब चांद की होती समंदर में भी तुगयानी।
की दरिया भी गले मिलने तभी साहिल से मिलता है।
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वह अपने हुस्न की दौलत लुटाते फिरते हैं लेकिन।
मगर मुझको तो एक बोसा बड़ी मुश्किल से मिलता है।
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गले मिल कर वह रुखसत हो रहा है क्या किया जाए।
बहुत ही दर्द देकर वो दिले बिस्मिल से मिलता है ।
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शहादत और गवाही मेरे मुंसिफ फैसला मुश्किल।
मगर लेने गवाही तू मेरे कातिल से मिलता है ।
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सुनाते हैं जो अफसाने मोहब्बत खुद भी जलते हैं।
जब कोई शमा परवाना सरे महफिल से मिलता है ।
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सगीर उसके तरफ से कोई गफलत कर नहीं सकता ।
मेरा महबूब जब मिलता बड़ी मुश्किल से मिलता है।
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शायर डॉक्टर सगीर अहमद सिद्दीकी खैरा बाजार बहराइच