नसीब हर दफा ही आजमा नहीं सकता
नसीब हर दफा ही आजमा नहीं सकता।
कोई भी वक़्त से पहले तो पा नहीं सकता।।
कड़कती धूप में निकला न पेट की खातिर।
वो एक रोटी की कीमत बता नहीं सकता।।
ये कैसे मोड़ पे आकर मिलाया है रब ने।
मिलाता दिल है क्यों जिससे मिला नहीं सकता।।
कहो तो पांव से सिर तक सजा दूँ गहनों से।
मैं तोड़ चाँद सितारे तो ला नहीं सकता।।
मेरे वतन पे यूँ मँडरा रहे हों बादल जब ।
मैं बादलों की तरह तुमपे छा नहीं सकता।।
अकड़ता बाप की जागीर पर निकम्मा है ।
जो चार पैसे कभी भी कमा नहीं सकता।।
उसे तो शौक है छाया में गाड़ी रखने का।
जो एक वृक्ष भी शायद लगा नहीं सकता।।
मिला है ज्योति मुहब्बत का ये सिला मुझको ।
तेरे बगैर कभी मुस्कुरा नहीं सकता।।
✍?श्रीमती ज्योति श्रीवास्तव