नसीब (कविता)
नसीब
नसीब को मत कोसो दोस्तों
घर बैठे नसीब बनता नही
हथेलियों पर जब
उभरते है छाले
तब बनता है नसीब
हर ठोकर
सबक सिखाती है
नसीब बनाने में
बार बार गिर कर भी
बुनती है जाल मकड़ी
बार बार हार कर ही
जीता था सिकन्दर
नसीब के भरोसे नहीं
कर्मो के भरोसे रहो दोस्तों
नसीब उनके ही होते है
जो संघर्षों में जीते है
लेखक संतोष श्रीवास्तव