नश्वर संसार
इस नश्वर संसार में ये अनुप्रीति कैसी ?
जब कुछ शाश्वत नहीं तो ये अनुभूति कैसी?
जब सब कुछ यहीं छोड़ जाना है तो ये बंधन कैसा ?
जो बिछड़ साथ छोड़ गया है तो ये क्रंदन कैसा ?
जीवन जो मोहजाल की परतंत्रता से मुक्त हो गया है,
यथार्थ की चिरनिद्रा की स्वतंत्रता में सुप्त हो गया है,
जो एक नवआयाम दिशा ओर अग्रसर हो ,
एक अनंत प्रशांत भवसागर में विलुप्त हो गया है।