!! नशे का कारोबार !!
कितना भी रोक लो,
कितना भी टोक लो
चाहे रख लो पहरेदार
जिस ने करना ही है नशा
वो कैसे न करेगा हर बार
जरा सा दर्द मिला
जरा सी लगी ठेस
चल देता है मैखाने को
लेने को दर्द ए दिल की दावा
पल भर के सकूं की
खातिर खो देता है मेहनत अपनी
बस दिल तू शांत हो जा
कम लूँगा में तो फिर भी
न जाने किस ने बनाई
यह महफ़िल और मैखाना
जिस ने बर्बाद कर दिए
कितने घर और उनका खजाना
जहाँ जाता है सकून ढूँढने
वह तो मिलते ही हैं उस जैसे
अपना सब हाल सब को बता कर
लूटा देता है न जाने कितने पैसे
गिरता लूढ़कता आ जाते है मकान पर
बुरा हाल होता है उस वक्त
जब घर बना होता शमशान सा
न वो समझता, न कोई कहता
बस अपनी धुन में कल के लिए सोता
न जाने कब होगा बन्द यह कारोबार
जिस से हर घर को मिलेगा समाधान
परिवार हो जायेगा खुशहाल
और नशा हो जायेगा बेजान
न जाने कब होगा बन्द ये कारोबार ??
अजीत कुमार तलवार
मेरठ