“नशा”
आकुल होकर कलम ने मेरे सब छंद विच्छिन्न कर दिए, और उद्गार निकले इस तरह,
“”नशा””
नशे पर क्या कहें, है नाश का यह द्वार कहलाता,
मगर देख़ो, बड़ा सच जानकर भी जीव फंस जाता,
कहीं बर्बाद होते घर, कहीं आबाद हो बिज़नेस ,
तनिक सोचो बड़ा ताज्जुब, किसे उपदेश यह भाता।।१।।
नशे में डूबने वालों ज़रा ख़ुद की कथा समझो,
नहीं दी फीस बच्चे की, मगर मदिरा ज़रूरी है,
तड़पते भूख से बच्चे, मगर पीना जरूरी है,
लगे पैबंद वस्त्रों में मगर, पीना जरूरी है।।२।।
निरक्षर रह गये बच्चे, मगर पीना नहीं छोड़ा,
मरा अतिसार में बच्चा, मगर पीना नहीं छोड़ा,
सहा अपमान पत्नी ने मगर पीना नहीं छोड़ा,
पड़े हो गंदगी में धुत, मगर पीना नहीं छोड़ा।।३।।
करो कुछ शर्म, छोड़ो व्यर्थ की यह विषमयी आदत,
तनिक हो गर्व खुद पर, कुछ ज़रा ऐसा करो जग में,
सुनो हे सत्यवीर अधीर होने की नहीं कुछ भी जरूरत है,
संभालो जिंदगी, कितनी ख़ुदा की खूब है नेमत।।४।।
@अशोक सिंह सत्यवीर
( 10/05/2018)