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12 Aug 2021 · 1 min read

नशा हो गइल

मापनी-212 212 212 212
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नैन उनकर शराबी नशा हो गइल।
जुल्फ लहरल त करिया घटा हो गइल।

नींद नैना लुटल चैन हमरो गइल।
आज अँखिया मिलावल सजा हो गइल।

प्रीत के घाव गहिरा भइल आजकल,
यार हमरो रहल बेवफा हो गइल।

ऊ कुरेदति हवे जख्म कइसे भरी,
आह में अब त हमरो मजा हो गइल।

याद में हर घड़ी यार खोवल रहऽ,
‘सूर्य’ लागत ह तहरो कजा हो गइल।

(स्वरचित मौलिक)
#सन्तोष_कुमार_विश्वकर्मा_सूर्य
तुर्कपट्टी, देवरिया, (उ.प्र.)
☎️7379598464

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