नशा हो गइल
मापनी-212 212 212 212
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नैन उनकर शराबी नशा हो गइल।
जुल्फ लहरल त करिया घटा हो गइल।
नींद नैना लुटल चैन हमरो गइल।
आज अँखिया मिलावल सजा हो गइल।
प्रीत के घाव गहिरा भइल आजकल,
यार हमरो रहल बेवफा हो गइल।
ऊ कुरेदति हवे जख्म कइसे भरी,
आह में अब त हमरो मजा हो गइल।
याद में हर घड़ी यार खोवल रहऽ,
‘सूर्य’ लागत ह तहरो कजा हो गइल।
(स्वरचित मौलिक)
#सन्तोष_कुमार_विश्वकर्मा_सूर्य
तुर्कपट्टी, देवरिया, (उ.प्र.)
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