नशा ख़राब है l
“नशा अभिशाप है”
बिड़ी तबाखू गांजा दारू
रंग- रंग पाऊच खावत हच ।
भरे जवानी म बुढ़ापा बुलावत हच
मौत ल अपन परघावत हच ।।
नशा म स्वास्थ्य होथे खराब
तभो ले लोग पीथे शराब ।
धन खरचा होथे बेहिसाब
जब इंसान होथे नशा म बर्बाद।
घर परिवार म होथे लड़ाई
नई होवय नशा ले कोनो के भलाई ।
अब तो कहना मान मोर भाई
नशा होथे मौत के खाई।
गांव बस्ती म मान सम्मान खोथे
सब कुछ खो के पाछू रोथे।
नशा ल छोड़ परिवार संग रहीथे
तभे जीवन आगु बड़थे।
रंजीत कुमार पात्रे
( कोटा बिलासपुर )